धर्मी सोचता अब अपने संगत आया है अधर्मी अबकी अंगद पांव लाया है। धर्मी सोचता अब अपने संगत आया है अधर्मी अबकी अंगद पांव लाया है।
ठहर जाए तो आबरु बिखर जाए जो निकृष्ट है श्रृंगार से इसके ही तो कुछ विशिष्ट है ठहर जाए तो आबरु बिखर जाए जो निकृष्ट है श्रृंगार से इसके ही तो कुछ विशिष्ट ...
धुंध से नीर निकाल ही लेंगे नवयुग के बीज को सींचेंगे। धुंध से नीर निकाल ही लेंगे नवयुग के बीज को सींचेंगे।
जैसे अंगद खड़ा पग रोपे खलु द्वार वैसे खड़ा कोरोना को भारत हमारा है। जैसे अंगद खड़ा पग रोपे खलु द्वार वैसे खड़ा कोरोना को भारत हमारा है।
ग्यारह जनों का इसीलिए तो हैं देखो एक और एक ग्यारह ! ग्यारह जनों का इसीलिए तो हैं देखो एक और एक ग्यारह !
करता है वह अपने से यही प्रश्न बार -बार। करता है वह अपने से यही प्रश्न बार -बार।